बुधवार, 6 मई 2015

माँ

अक्सर देखा है
पुरुष कवि होते है
दार्शनिक होते है
फ़िल्मकार होते है
चित्रकार होते है
बहुत बेचैन है
कुछ रचने के लिए
क्योकि वह कभी
जीवन नहीं रच सकता
क्योकि वह कभी
माँ नहीं बन सकती

क्याभूले आँचल माँ का
धूप भी शबनम हित्ती थी
सिर शाहलती जो ममता से
ओ हथेलिया रेशम होती थी
भूखी रह रहती तुम
जब रोटिया कम होती थी
होते जब नजरो से ओझल
फिर सांसे बेदम होती थी
क्या ओ दिन थे
जब माँ थी
मस्त फिजा हरदम
होती थी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें