शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

विकलांगता एक ऐसी परिस्तिथि है जिससे आप चाह कर भी ,पीछा नहीं छुड़ा सकते..

जियो तो ऐसे जियो की मौत की
ख्वाहिश क़दमों पर पड़ी हो
और मरो तो ऐसे मरो की ज़िन्दगी तुम्हे
वापिस ले जाने कब्र पर खड़ी हो ......

#विकलांगता एक ऐसी परिस्तिथि है जिससे आप चाह कर भी ,पीछा नहीं छुड़ा सकते..
एक आम आदमी छोटी छोटी बातों पर झुंझला उठता है तो ज़रा सोचिये उन बदकिस्मत लोगों का जिनका खुद का शारीर उनका साथ छोड़ देता है, फिर भी जीना
कैसे है कोई इनसे सीखे, कई लोग ऐसे है जिन्होंने विकलांगता जैसी कमज़ोरी को अपनी ताकत बनाया है l तो कई लोग ऐसे भी जो ज़िन्दगी से निराश होकर इसी कमज़ोरी पर सिर्फ आंसू बहाया है l

लेकिन विकलांग लोगो से हम मुह नहीं चुरा सकते क्योंकि आज भी कहीं न कहीं हम जैसे आम लोग ही इन्हें हीन भावना का शिकार बना रहे है, उनकी कमज़ोरी का मज़ाक उड़ा कर उन्हें और कमज़ोर बना रहे है, उन्हें दया से देखने के बजाये उनकी मदद करें, आखिर उन्हें
भी जीने का पूरा हक है और यह तभी मुमकिन है जब आम आदमी
इन्हें आम बनने दें , वरना वोह दिन दूर नहीं जब यह लोग अलग प्रांत जैसी  मांग करेंगे जहाँ इन्हें सुकून और शांति की ज़िन्दगी मिल सके |

#सरकार की भी कोशिश होनी चाहिए  चाहिए की वह इनके अधिकारों से इन्हें रूबरू कराएँ, इन्हें बंदी न बनने दें..लोग ये बात ना भूलें की अपंग और विकलांग कोई भी-कभी भी बन सकता है | जिन घृणा भरी नज़रों से हम इन्हें देखते है उन्ही नज़रो में अगर खुद के
किसी व्यक्तिगत आपातकाल का नजराना देख लें तो विकलांगो के प्रति ये भावना अपने आप दूर हो जाएगी |

ज़रा सोचिए इनके हालात, जहाँ आज के समय में जब खून के रिश्ते तक धोका दे जाते है और अपना सहारा स्वयं बनना पड़ता है, ऐसे में अगर आप का खुद का शारीर ही साथ न दे तो इंसान किस उम्मीद पर जिएगा..किसके सहारे जिएगा ? फिर भी यह अपनी अलग दुनिया बनाकर खुश रहना सीख लेते है..लोगो की हीनता से भरी  नज़र की आदत दाल लेते है.. हालाकिं सरकार ने इनके लिए  कई #योजनाये मुहैया करायी है, मगर क्या सिर्फ इतना ही इनके लिए
काफी होगा | 

#विकलांग_दिवस तक सुनिश्चित करने  पर इन सबका
क्या फायदा अगर इनसे उन लोगो को कोई ख़ुशी ही न
मिले, क्यूंकि इनका  आत्मसम्मान तो फिर भी ठोकरे खा ही रहा है  |

सबसे बड़ा प्रश्न यह है की विकलांग लोगो को बेसहारा और अछूत क्यों समझा जाता है? उनकी भी दो आँखे दो कान दो हाथ और दो पैर हैं और अगर इनमे से अगर कोई अंग काम नहीं करता तो इसमें इनकी क्या गलती.. यह तो नसीब का खेल है.. इंसान तो यह तब भी कहलायेंगे.... जानवर नहीं..... फिर इनके साथ जानवरों जैसा बर्ताव
कहा तक सार्थक है? किसी के पास पैसे की कमी है, किसी के पास खुशियों की, किसी के पास काम की तो अगर वैसे ही इनके #शारीरिक, #मानसिक, #ऐन्द्रिक या बौद्धिक विकास में किसी तरह की कमी है तो क्या बड़ी बात है? कमी तो सबमे कुछ न कुछ है ही, कोई भगवन तो है नहीं.. तो इन्हें अलग नज़रो से क्यों देखा
जाए?

अगर हम इनकी मदद करने के बारे में सोचें तो हर कोई चैन से साथ रह पायेगा, जैसे की अगर किसी के सुनने की शक्ति कमज़ोर है तो उसे #लिप_रीडिंग" यानी होठों को पढ़ने की विद्या, सिखाई जा सकती है.. इनकी आँखों का इस्तेमाल करके इन्हें सशक्त बनाया जा सकता है.. वैसी ही अगर कोई देख नहीं सकता तो उसके सुनने की
शक्ति को इतना मज़बूत बनाये की वो कानों से ही देखने लगे और नाक से महसूस करले.. कोई अंग ख़राब है तो ऐसा पहनावा दें की वो छिप जाए और इंसान पूरे #आत्मविश्वास के साथ सर उठाकर चल सके.. ऐसी कई तमाम चीज़े है जिससे विकलांगता की समस्या को
अनदेखा किया जा सकता है और दवा और दुआ तो दो ऐसे विकल्प है जिनपर यह दुनिया चलती है |

अब इस समस्या को हम इस दुनिया से मिटा नहीं सकते पर हाँ इससे लड़कर हम इसे दुनिया से गायब ज़रूर कर सकते हैं.. बात सिर्फ पहेल करने की है |