माननीय प्रधानमंत्री महोदय जी
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माननीय प्रधानमंत्री मंत्री जी आप देश के पहले प्रधानमंत्री मंत्री है जिन्होंने हर वर्ग के हितो के बारे में गम्भीरता से विचार किया आप ने विकलागो के बारे में भी सोचा आप के मन में विचार आया की जब इश्वर मनुष्य में कुछ कमी रखता है तो उसको पूरा करने के लिए कुछ विशेस शक्ति दिव्यता देता है माननीय प्रधानमंत्री जी विकलागो में कोई दीव्यता या इस्वरिय अलोकिक शक्ति नहीं होती है विकलाग भी अन्य मनुष्यों की तरह ही हैं और उनमें कोई विशेष शक्तियां आदि नहीं होती। उन्हें “दिव्यांग” कहना ठीक उसी तरह है जैसे गांधी जी ने एक नया शब्द “हरिजन” गढ़ा था। एक वर्ग के लोगों को नाम मिल गया कि वे भगवान् के जन हैं और हकीकत में उन्हें छूने तक से गुरेज़ होता रहा।इस लिए विकलागो को दिव्याग कहा जाना उचित नहीं होगा और आप ने अपने मन की बात को सार्वजानिक करते हुए विकलागो को नया नाम दिव्याग दे दिया परन्तु माननीय प्रधानमंत्री जी विकलाग समाज को नए नाम की नहीं दया की नहीं समान अधिकार समान अवसर सरक्षण पूण भागीदारी शिक्षा रोजकर की जरूरत है विकलाग समाज को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए दिव्याग कहना जरुरी नहीं है माननीय प्रधानमंत्री जी सेन्सस 2001 से 2011 के बीच किये गए सर्वेक्षण में विकलांगजनो की संख्या 22.4% निकाली गयी । 2001 में यह संख्या 2.19 करोड़ थी जो की 2011 तक बढ़कर 2.68 करोड़ पहुँच गयी जिसमे 1.85 करोड़ पुरुष व 1.18 करोड़ महिलाये शामिल है विश्व बैंक द्वारा करवाए गए एक अध्ययन में पाया गया है भारत में 7 करोड़ से अधिक (कुल जनसंख्या का 6%) विकलांग होने का अनुमान है. कि भारत में विकलांग व्यक्ति अपेक्षाकृत अधिक गरीब हैं, उनके अनपढ़ और स्कूल नहीं जाने की संभावना अधिक होती है, उनके रोजगार के दर कम होते हैं और उन्हें सामाज में कलंक के रूप में माना जाता है. भारत में केवल 2% विकलांग स्कूल जाते हैं और उनमें से केवल 1% को लाभप्रद रोजगार मिलता है. Delhi High Court ने 2009 में निर्देश दिए थे कि प्रत्येक विद्यालय में 2 ऐसे शिक्षको की नियुक्ति होगी जो विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को शिक्षा प्रदान करेंगे इस उपलक्ष में अभी तक कोई भी कार्यवाही नही की गयी अतः प्रधानमंत्री जी से अनुरोध है कि वो सभी विद्यालयों में विशेष शिक्षको की स्थाई नियुक्ति करवाये साथ ही रोज़गार में अवसर प्रदान करें 2011 के बाद से भारत सरकार के पास विकलांगो की जनसँख्या का न ही कोई भी सुनिश्चित आंकड़ा है और न ही इनकी मांगों को सुना जा रहा है ऐसे में सिर्फ शब्दों के फेरबदल से क्या बदलाव आएगा । आज भी विकलांग भाइयों को पेंशन के लिए विकलांगता प्रमाणपत्र के लिए कार्यालयों व् अस्पतालों के चक्कर लगाना पड़ता है हमारा प्रधानमंत्री जी से अनुरोध है कि वो शब्द के फ़ेरबदल की जगह विकलांगजनो को समान अवसर , अधिकार संरक्षण तथा पूर्ण भागीदारी के साथ साथ विकलांगजनो के लिए शिक्षा, रोजगार, रक्षा , सम्मान एवं बाधामुक्त वातावरण प्रदान करें जिससे हमारे विकलांगजन भाई एक सुखी संपन्न व सम्मानित जीवन यापन कर सके।
धन्यवाद
भवदीय
रजनीश तिवारी
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